विज्ञान

अकबर की लोकप्रियता से घबराये लोगों ने छबि बिगाडऩे करायी कबीरधाम हिंसा!

राजेन्द्र यादव
छत्तीसगढ राज्य एक सांप्रदायिक सौहार्द के निवासियों का राज्य है यहां के लोक जाति-पात धर्म से अलग होकर निजी संबंधों को अधिक महत्व देते हैं। तभी तो यहां मो. अकबर जैसे व्यक्ति को कबीरधाम जिले से कांग्रेस का नेतृत्व पिछले दो दशक से अधिक वर्षों से कर रहे हैं। कैबिनेट मंत्री मो. अकबर अपने सांप्रदायिक सौहार्दपूर्ण और भाई-चारे के लिए जाने जाते हैं। प्रदेश की जनता को मालूम है कि सन् 1992 में मो. अकबर ने राजधानी रायपुर के मंडी में भव्य विशाल राम मंदिर बनवा कर धार्मिक सद्भावना की मिसाल कायम की थी। आज भी मंडी के राम मंदिर में मो. अकबर के नाम की ज्योति नवरात्रि में जलती है, मंदिर की सारी व्यवस्थाएं पुजारी आदि की व्यवस्था तीन दशक से मो. अकबर ही संभालते हैं।
मो. अकबर पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस के सभी विधानसभाओं की तुलना में सर्वाधिक रिकार्ड मतों से जीतने वाले प्रत्याशी बने, क्योंकि ये उनकी सरलता सहजता सादगी और मधुर व्यहार और कबीरधाम जिले की जतना की सेवा का नतीजा रहा वे जनता से निरंतर संवाद बनाये रहते है जो कि उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदियों की आंखों में खटक रहा रहा था। कवर्धा के राजनैतिक रसूखदार किसी ना किसी तरह अकबर की लोकप्रियता और छवि को खराब करना चाहतेे हैं आखिर उन्हें कबीरधाम की घटना से ये मौका मिल ही गया!
कवर्धा में घटित सामाजिक सौहाद्र्ध को बिगाडऩे की घटना से यह स्पष्ट हो गया है कि इसे जानबूझकर सांप्रदायिक भगवा रंग दिया गया क्योंकि कद्दावर मंत्री अकबर की रिकॉड जीत से गुस्साए कथित विपक्षी दल के लोग ताक में थे और मौका मिलते ही इसे भुनाने में लग गए, क्योंकि क्षेत्रीय विधायक और मंत्री मो. अकबर के कार्य और उनकी लोकप्रियता से ये इतने बौखलाए हुए थे कि उनके हाथ से कबीरधाम जिले की राजनीति फिसलती जा रही थी। तभी तो अपने स्वभाव के अनुसार नफरत फैलाने वाले भी सक्रिय हो गए और छत्तीसगढ़ में एक अलग तरह की नफरत का माहौल बनाने का असफल प्रयास और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की विफल कोशिश में लग गए। एक परिवार विशेष और दल के द्वारा अपने खत्म होते राजनैतिक वर्चस्व को बचाने की खातिर कबीरधाम कवर्धा जिले के भाई-चारे को सांप्रदायिकता को भेट चढ़ा दिया।
कबीरधाम नगर में एक वर्ग विशेष के द्वारा झण्डा लगाया जा रहा था जो हर वर्ष से मनाये जाने वाले त्योहार में लगाया जाता रहा है कभी कोई परेशानी नहीं थी लेकिन कवर्धा में अपने खोऐ राजनैतिक वर्चस्व को फिर से हासिल करने के लिए एक परिवार के लोगों के द्वारा इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने में पुरजोर तरीके से मुद्दा बनाया गया। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उनके प्रत्याशी और संगठन की करारी हार का अपमान वो कई दिनों से बर्दाश्त नहीं कर पा रह थे। पूरी जानकारी इस तरह से है जिसे सांप्रदायिक रंग दिया गया। कवर्धा शहर की कर्मा चौक पर एक संप्रदाय द्वारा दूसरे संप्रदाय के झंडे के बगल में अपना झंण्डा लगाने को लेकर पैदा हुआ विवाद राजनैतिक तूल पकड़ लिया था जबकि क्षेत्रीय विधाय मो. अकबर का इस घटना से दूर-दूर तक कोई संबंध और वास्ता नहीं था। लोहारा नाका चौक इलाके में झण्डा लगाने को लेकर विवाद हुआ जिसमें दो गुटों के युवक आपस में भिड़ गये और कुछ लोग मामूली रूप से जख्मी हुए। इसी घटना को लेकर एक दल विशेष और उससे जुड़े परिवार ने इस घटना को जान बूझकर सांप्रदायिक रंग देकर तूल दिया।
ग्राउंड रिपोर्ट और साक्ष्य बता रहे हैं कि इस घटना के दो दिन बाद विश्व हिन्दू परिषद ने बंद का आव्हान कर जुलूस निकाला और उसके बाद शरारती तत्वों ने तोड़-फोड की और जिला प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा। जुलूस के दौरान हुई हिंसक घटनाएं जिसे पूरा संरक्षण इन परिवार विशेष का था और इनके द्वारा कवर्धा के बाहर से दंगाई बुलाए गये जबकि वहां जिला प्रशासन ने धारा 144 और कफ्र्यू लगाया हुआ था फिर इतने अधिक तादाद में लोगों को लेकर वाहन ने कैसे नगर में प्रवेश किया ये गंभीरता से सोचने वाली बात है। प्रत्यक्ष दर्शियों और व्यापारियों का कहना है कि ये हिंसक भीड़ के लोग कवर्धा के नहीं थे ये लूट-पाट करने वाले बाहरी गुंडे और असामाजिक तत्व थे जिन्हें प्रयोजित तरीके से कवर्धा बुलाया गया था और कबीरधाम का पुलिस प्रशासन खामोश और मूकदर्शक बनकर देख रहा था।
छत्तीसगढ़ के कवर्धा शहर में झंडे को लेकर हुई हिंसा पर पुलिस और जिला प्रशासन के द्वारा उपद्रव को लेकर शुरू हुई प्रशासनिक कार्रवाई में कई भाजपा नेताओं के नाम भी आ रहे हैं जिससे साफ पता चल रहा है कि भाजपा के द्वारा फैलाया गया नफरत था। पुलिस ने भाजपा सांसद संतोष पांडेय, डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह सहित 14 भाजपा नेताओं पर अशांति फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया। इनके ऊपर बलवा करने के साथ ही सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने की धारा लगाई गई है। जिससे साफ जाहिर होता है कि यह साम्प्रदायिक घटना नहीं थी अपितु राजनैतिक वैमनस्यता थी?

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