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फिर 8 महीने बाद अचानक नीतीश-तेजस्वी की बंद कमरे में मुलाकात से गरमाई बिहार की सियासत

पटना। बिहार की राजनीति को समझना हर किसी के बस की बात नहीं है। कुल मिलाकर देखें तो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू को लेकर कयासों का दौर लगातार जारी रहता है। इन सब के बीच 8 महीने के बाद अचानक पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से मुलाकात की है। दोनों नेताओं की यह मुलाकात बंद कमरे में पटना सचिवालय में हुई है। करीब 8 महीने के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई है जब दोनों नेताओं की यह मुलाकात हुई है। हालांकि इससे पहले देखा जाए तो बीच में एक वक्त आया था जब दोनों नेताओं की मुलाकात फ्लाइट में हुई थी।
लेकिन कहीं ना कहीं नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की मुलाकात ने बिहार की सियासत को एक बार फिर से तेज कर दिया है। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार फिर कुछ काम करने वाले हैं? दरअसल, इसको एक और मुद्दे से जोड़कर देखा जा रहा है। यह मुद्दा है जदयू के मुख्य प्रवक्ता रहे कैसे त्यागी का इस्तीफा। हालांकि दावा किया जा रहा है कि नीतीश और तेजस्वी की मुलाकात राज्य में बिहार में नई सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर हुई है। इसमें नेता प्रतिपक्ष से भी राय मशवरा किया जाता है। यही कारण है कि सम्राट चौधरी से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसमें कोई नई बात नहीं है। नेता प्रतिपक्ष को मुख्यमंत्री से मिलते रहना चाहिए। जब विजय सिन्हा भी नेता प्रतिपक्ष थे तो उन्होंने इस मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी।

तेजस्वी यादव से भी इस बारे में सवाल किए गए। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने नवीं अनुसूची को लेकर बातचीत की है। तेजस्वी से इसके बाद पूछा गया कि फिर मुख्यमंत्री ने क्या कहा तो उन्होंने कहा कि उनकी ओर से कहा जा रहा है कि मामला कोर्ट में है। नीतीश कुमार के एक प्रमुख सहयोगी ने राज्य के संशोधित आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की अपनी मांग पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव द्वारा दबाव डालने का उपहास उड़ाया। वैसे पटना उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने के बाद अब यह कानून अस्तित्व में नहीं है।
नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता विजय कुमार चौधरी ने यह भी कहा कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण में 50 प्रतिशत से 65 प्रतिशत की वृद्धि को रद्द किये जाने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार पहले ही उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुकी है। उन्होंने आश्चर्य जताया कि पूर्व उपमुख्यमंत्री और बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता यादव ने एक सितंबर को इस मुद्दे पर धरना देकर क्या हासिल करने की कोशिश की।

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